वक़्त वक़्त वक़्त....
वक़्त के साथ हर बात पुरानी हो जाती है,
वक़्त में ही हर एक कहानी छुप जाती है।
वक़्त ही वो है, जिसमें नज़दीकियां बढ़ जाती हैं,
और वक़्त अगर ना मिले, तो दूरियां आ जाती हैं।
वक़्त की ही तो बात है,
जहां ज़माना बदल जाता है।
वक़्त की ही तो बात है,
जहां कोई गरीब से अमीर, और अमीर से गरीब बन जाता है।
वक़्त वो है जिसमें बचपन जिया जाता है,
और यही वो वक़्त है जिसमें जवानी से बुढ़ापे का सफ़र गुज़र जाता है।
कहीं पहुंचे या ना पहुंचे,
यह वक़्त हर जगह पहुंच जाता है।
यार से लेकर प्यार तक,
और प्यार से लेकर परिवार तक,
यह वक़्त ही है जो हर नाते को बांधता चला जाता है।
कोई वक़्त से वक़्त निकालकर आता है,
और कहीं कोई वक़्त, किसी और को वक़्त देता है।
यह वक़्त ही अनसुलझा सा सुलझा है,
इसे सुलझाने की कोशिश में भी यह कमबख्त वक़्त ही चला जाता है।
- संकेत