तिरस्कार कोई कब तक सहे,
अपनो से ही यह प्रहार कोई कब तक सहे।
जिसके लिए पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया,
उससे मिलता है, दुर्व्यवहार कोई कब तक सहे।
जैसे बच्चे रहते है, अपने मातापिता के घर में,
क्यों बूढ़े मातापिता वैसे नहीं रह पाते अपने ही घर में,
की यह आभाव कोई कब तक सहे।
तिनका तिनका जोड़ा,
खुद को दर्द के साथ कार्यरत रखा,
जिसको उस लायक बनाया कि,
वो कही से भी पीछे न रह जाए,
जब वही करे हरदम गुस्सा तो कोई कब तक सहे।
दर्द का यह भाव ना छुप सकता है,
ना तो इंसान छुपा सकता है।
जब अपना खून ही पराया हो जाए,
तो यह कोई कब तक सहे........
मातापिता को इतना मजबूर किया जाए कि,
वो खुद ही अपने औलाद से दूर हो जाए तो ये कोई कब तक सहे।