बहुत दिनों के बाद कुछ अर्ज किया है।
किसी के नाकाम इरादों को
नाकाम कर दिया मैंने तो
उसे बुरा लगा!
झूठे नाकाबों में लिपटा
एक चेहरा
मैंने पढ़ लिया तो
उसे बुरा लगा!
क्यों भला?
तुम्हें बुरा लगा!
अब क्या करें?
यह रहमत मुझे
इबादत में मिली है।
और सब्र मैं खानदानी हूं...
झूठी तारीफे पसंद नहीं मुझे,
आईना मेरा भी है...
आईना तेरा भी है...
अब अपनी ही आईने
नजरे नहीं मिल पाए
तो बुरा क्यों लगा?
मेरी नजरों में कोहिनूर ही थे,
खामखां कोयले में जा गिरे
तो बुरा लगा!
जा... मैने माफ किया।
लो भला!
इस बात से भी
तो बुरा लगा!
खैर जाने दो...
बेकार कि बातों को।
मैने दिल पर लेना छोड़ दिया है।
Darshu..Meeti..