*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*धुंध, धुआँ, कुहासा, ओस, उजास*
जीवन की हर *धुंध* से, रहें सुरक्षित आप।
संकट कभी न घेरते, कभी न आते ताप।।
*धुआँ*-धुआँ जीवन हुआ, जीवन है बेकार।
चलो बुझाते आग को, करे प्रकृति शृंगार।।
बढ़ा *कुहासा* देखकर, घबड़ाएँ क्यों आप।
सूरज आऐगा अभी, उसको लेगा नाप।।
ज्यों-ज्यों ठंडी बढ़ रही, खेलें भू पर *ओस*।
प्रकृति बिखेरे नव छटा, भरती मानव जोश।।
सूर्य *उजास* बिखेर कर, मन में भरे उमंग।
जीवन में उत्साह भर, जग को करता दंग।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
पुणे