गीता-संदर्भ-५
यह भूमि तो जय भूमि है
सोचो पार्थ यहाँ मिलन है,
इसी पृथ्वी की सुगन्ध बना हूँ
इस धरती से ऊपर मैं हूँ।
इस पथ को पार करो
न्याय का साहचर्य करो,
मैं इस भूमि का युद्ध नहीं हूँ
पर युद्ध से विमुख नहीं हूँ।
केशव जो विगत था वह तुम हो
जो कह रहे हो वह तुम हो,
जो कहना है वह तुम हो
जो सर्वत्र है वह तुम हो।
*** महेश रौतेला