पापा की परी
लेखक : भवानी शंकर सोनी।
मासूम नाजुक प्यारी सी बेटी हु मै।
एक आंगन की महकती कली हु मै।
हँसना खेलना है मुझको भाता।
ये समाज मुझको क्यो नही समझ पाता।
तरह तरह की पाबंदी ,मुझ पर ही क्यो लगाता।
पापा ने मुझे परी बनाया , लोगों ने पापा की परी का मजाक बनाया,,
नाराज हु मै तुमसे भी (पिता से ), क्यो भेदभाव किया बिटिया से।
तुमको बेटा ही है प्यारा , हमको तो समझे सिर्फ अंधियारा।
पिता👇
बिटिया तू है अनमोल रत्न, इस लिए तुझ पे है पेहरा।
भाग्यशाली है, जिनको ,माँ ,,पत्नी ,,का प्यार मिलता,,,लेकिन वो सौभाग्यशाली है जिनको ,,बहन ,,बेटी का प्यार मिलता।
उन्ही सौभाग्यशाली में से एक है तेरा पिता ,,,जिसको बेटी का प्यार मिला।।।
अपनी मां से पूछ।
नशा करता था बाप तुम्हारा।। बदला है जीवन उसका सारा, ,,
जिस दिन तूने जन्म लिया चाहे,,,
तु इसे चिंता समझ या चमत्कार।
जिस इंसान को बदल न पाया संसार ये सारा।
उसे बदल दिया सिर्फ तेरी एक मुस्कान ने।
जो जिद्दी था, माँ,पत्नी की जीसने ना मानी ।
वो तेरे आगे झुक गया। तेरे खातिर शराब की लत को एक पल में भूल गया।
बेटी है शक्ति पिता की।
वो देख ,,
कह रहा वो जुआरी।
नही हुआ विश्वास किसी को।
पर जब देखा उस बच्ची की आंखो में।
दिव्य शक्ति सी चमक दिख रही आँखों मे।
दूर खड़ी छोटी बिटिया लड़ रही थी बदमासो से।
खबरदार, खबरदार
मेरे पापा को जुआ खेलने के लिए उकसाया।
फेंक ताश की गडी ,बो भी चिलया, बिटिया अब से तौबा है इस जुए से।
बेटी पत्थर को भी मोम करदे,,,वो है तेरी शक्ति।
समझ न तू खुद को अंधियारा,, तू तो साक्षात है माँ शक्ति।।
बस इस लिए डरता हूँ,,की कही खो न दु अपनी शक्ति को,,,इसलिए थोड़ी शख्ती रखता हूं।
प्यार तो बेटे से भी करता हु,,,लेकिन तूझ से कुछ ज्यादा करता हु।।
मैं ही हूँ,,जिसने सबसे पहले अपनी बहन को चिढ़ाया,,, पापा की परी उड़ कर चली,,,,
लेकिन जब मुझे मेरी परी मिली तो जाना,,,,की बिटिया तो बाप के लिए सच में परी होती है,,,
तभी तो बाप की आंख ,सच मे गीली होती है,,,जब परियो की विदाई होती है,,,,
देख मेरी तो कल्पना से ही आंख भर आईं,,,
पापा बस,,,अब नही कोई नाराजगी ,,बस अब घर चलो,,,नही तो मैं भी यही रो दूँगी।।।
https://youtu.be/uIUmt9Sd0oU?si=VmjU1CJ-K1aWjhy7