Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

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बड़ा सवाल
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यह कैसी विडम्बना है कि जो डरे हुए हैं
खुद को लाचार, असहाय बता रहे हैं
दोहरा मापदंड अपनाएं जाने का आरोप लगा रहे हैं
बदले में भाईचारा दिखाने का
वीभत्स दृश्य प्रस्तुत कर रहे हैं।
यह कैसा भाई-चारा, गंगा जमुनी संस्कृति को
पाल पोसकर कर बड़ा कर रहे हैं,
अपने जाति, धर्म, आराध्य, की आड़ में
हिंसा करते और इंसानियत का खून कर रहे हैं।
अपने और अपनों को ही श्रेष्ठ समझ रहे हैं
अपने ही खून को बदनाम कर रहे हैं,
क्या मिल रहा उन्हें ऐसा करके
पूरे जाति, धर्म, आराध्य पर
अविश्वास का आवरण डाल रहा है,
अपनी और अपनी के साथ
जाने कितनों के भविष्य को अंधेरे में ढकेल रहे हैं।
यह देश सबका है
यह बात उनके समझ में क्यों नहीं आती?
यहीं जन्में, पले- बढ़े, रोजी रोजगार करते
जीवन के हर आयाम का भरपूर लाभ लेते
फिर भी इसी देश देश और धरती को
अपना कहने में बड़ा सकुचाते हैं,
और पड़ोसी राष्ट्र और सात समंदर पार की
चिंता में बेचारे दुबले हुए जाते हैं,
जो इन्हें जानते तक नहीं
इनकी परवाह तक नहीं करते
उनके लिए ये गला फाड़ फाड़कर चिल्लाते हैं।
अपने तीज, त्यौहार, पर्व पर भाईचारा चाहते हैं
हर व्यक्ति जाति धर्म का साथ चाहते हैं
लेकिन औरों के तीज त्योहार पर्व में लकड़ी लगाते हैं,
और फिर जबरदस्ती का पीड़ित
और कमजोर होने का रोना रोते हैं।
आखिर ऐसा कब तक चलेगा?
यह बड़ा सवाल मुँह बायें खड़ा है,
आज देश,समाज ही नहीं हर व्यक्ति पूछ रहा है
हिंदू, मुसलमान, सिख ईसाई जैन या पारसी हो
हर किसी से ये सवाल पूछ रहा है।
यह विडंबना नहीं तो और क्या है?
कि ये सवाल राजनीति और वोट की
भेंट चढ़ता जा रहा है,
भाई भाई में द्वंद्व बढ़ता जा रहा है,
अपनी भारत माता का आँचल तार तार होता जा रहा,
उसके ही लाल उसका नित अपमान कर रहा है,
हमारे देश और देशवासियों को ये सब देखने को
आखिर क्या क्या देखने को मिल रहा है
ईश्वर, अल्लाह, गाड, फादर को बांटा जा रहा है
एक मात्र अदृश्य सत्ता को भी नकारा जा रहा है
समझ नहीं आता आज ये क्या हो रहा है?

सुधीर श्रीवास्तव

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 111957820
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