कभी प्यार से तो कभी तकरार से,
कभी इठला के, तो कभी झिल्लाक्के,
नाज़-नखरे दिखाके,
ना जाने कहां से यह हुनर सिखा उसने
जिसमें मैं, बह जाता हूं...
अंदाज़ ए बयां कहानी सुनके।
इस बार मन पक्का कर लिया मैंने भी...
इक बार भी उसकी बातों में न आऊंगा।
न जाने कैसे फिर इस बार, उसकी भोली आंखों में फंस गया।
न जाने कैसे फिर इस बार, पत्थर दिल, मोम- सा पिघल गया।
हर बार जब वो शिकायतों का पोटला खोलती है...
बही खाते में, दूसरों की गलतियां ही लिखवाती हैं...
कभी कोई सवाल पूछ लो, तो मुस्कुराके आंख मार देती है।
और पास आ प्यार से कहती है -
आप राजा हो ,मैं आपकी राजकुमारी।
फैसला आपका होगा लेकिन होगी मेरी मर्जी।
हमारे रिश्ते की यही ख़ूबसूरती है...
हर बार अपनी बेटी से हार जाता हूं...
फिर भी जीत मेरी ही होती हैं।
- Ruchi Modi Kakkad