एक तुम ही नहीं तन्हा... गर्दिश में ये जहाँ है...
तेरे लफ़्ज़ों की महफ़िल में... मेरा नाम जो शुमार है...
शर्मिंदगी नहीं है... मुझे तो इस पर गुमान है...
ठोकर नहीं मिली है... ये तो मेरी चाहत का सिला है...
तुझसे वफ़ा निभाकर... ख़ुद से जो मुकरा हूँ...
आवारा भटक रहा हूँ... न बचा कोई आसरा है...
माक़ूल समझ कर मौसम... ज़रा मुस्कुरा ही देते...
लावारिस समझ के मुझको... क्यों किया बेसहारा...
होंठों से न सही तो आँखों से कर देते इशारा...
ग़लती समझ के हमको ठुकराना न था गवारा...
एक तुम ही नहीं तन्हा... गर्दिश में ये जहाँ है...
तेरे लफ़्ज़ों की महफ़िल में... मेरा नाम जो शुमार है...