सब सो गए में अभी तक जाग रहा हूं
क्या है मेरी मंजिल क्यों में भाग रहा हूं
दायरो में सिमटी उन नजरों को मैं भांप रहा हूं
उन मासूमों की ख्वाइशो को मैं जान रहा हूं
टूटते तारों से हो रही आरजू को सुन रहा हूं
क्या है मेरी मंजिल क्यों मैं भाग रहा हूं
पसीनो से सींचते अपनों के सपनो को देख रहा हूं
तारीखों में बहते अरमानों की पताका हांक रहा हूं
सिसकती आवाजों में हारती जिंदगी को समेट रहा हूं
क्या है मेरी मंजिल क्यों मैं भाग रहा हुं
बढ़ते कदमों के साथ घटती सांसे गिन रहा हूं
चमकते चहकते चहरो की उदासी पढ रहा हूं
खैरियत पूछता बेगानो से अपनो से रूठ रहा हूं
क्या है मेरी मंजिल क्यों में भाग रहा हूं।
सब सो गए में अभी तक जाग रहा हूं
क्या है मेरी मंजिल क्यों में भाग रहा हूं
✍️ राम ✍️