युगों युगों से संभाला , वो परंपरा होती है।
जज़्बात से धर्म पनपता है , बढ़ता है ।।
कितने आए ,कितना कटे , कितने रुसवा हुए ।
जानकारी और ज्ञान अक्सर अलग होता है।।
पाषाण पत्थर को भी पौधा तोड़ देता है ।
हल्की सी चोट उसका रास्ता तय करता है।।
बदला नहीं है ये दुश्मनों से , खुदी हे हमारी ।
किताबो ने बना रखी है जंजीरे हमारी ।।
कूड़ा साफ करने को हाथ मेले करो तो सही ।
गंध घर में फैलेगी , कभी जुको तो सही ।।
गिरोगै तो कब्र तक नसीब नही होंगी तुमे।
रौंदकर कुचले जाओगे , लेकिन मरोगे नही ।।
सालो से सुनकर , दबकर ही जागे हो ।
धर्म से हम हे हमसे धर्म नही ।।
कुछ नही करोगे तो समय परिवर्तन ला देगा ।
नए पन्ने , नए अर्थ , नए नाम जोड़ देगा ।।
कहते हो हमारे यहा ही ज्यादा धर्मवीर आए ।
जहा ज्यादा कूड़ा हो वहा ये होगा ही ।।