मैं बाग़ी ही रहूँगा उन महफिलों का,
जहां शोहरत तलवे चाटने से मिलती है।
मैं अपने अज़्म की कीमत न चुकाऊँगा,
ना बेवजह के तावीज़ों को सजाऊँगा।।
मैं सच्चाई की राह पर चलता रहूँगा,
चाहे जो भी कीमत हो, पर अपना रास्ता न छोड़ूँगा।
मुझे परवाह नहीं उनकी चमक-दमक से,
मैं सच की राह पर अपना इंकलाब लाऊँगा।।
मैं बाग़ी हूँ और बाग़ी ही रहूँगा,
सच्चाई की राह पर चलते हुए खुद को साबित करूँगा।
ना तिजारत की ऊँचाइयों में खो जाऊँगा,
ना फरेब के बाज़ार में बिक के आऊँगा।।
मैं बाग़ी हूँ और बाग़ी ही रहूँगा,
अपनी पहचान, अपने रास्ते पर अडिग रहूँगा।