इन हवाओं से पूछा जो रुतबा तेरा ,,
बोली कोमल कली अनछुई है अभी ,,
थोड़ा बचपन भी है और जवानी नई ,,
कुछ रवानी की बारिश हुई है अभी ,,
थोड़ा इठलाती है थोड़ा बल खाती है ,,
थोड़ा इतराती है थोड़ा शरमाती है ,,
इन अदाओं में लहराती है झूमती ,,
पतझड़ों का पता कुछ नहीं है अभी ,,
देख भंवरे मचलते हैं मंडराते हैं ,,
हर अदा पर नया गीत एक गाते हैं ,,
झूमती है कली अपनी मस्ती में बस ,,
फूल बनने की चाहत नई है अभी ,,,