ऊंगली बढ़ाकर जो चांद का इशारा करता है।
पर हाथ थामकर जो राह भी दिखाता है।।
खुद गिरकर जो बच्चो को चलना सीखाता है।
मुस्किले कितनी भी हो , जीना सिखाता है।।
कोन अपना , कितना अपना और क्यू अपना ।
दूसरो तक का अपना दायरा बनाना तय करता है।।
हाथ छोड़ने से गले लगाने तक जो साथ रहता है।
अपनी धड़कन में हम को समा लेता है।।
सिर्फ नौ महीने नही , सारी जिंदगी हमे जीता है।
पंख ही नही हमे उड़ान भी जो देता है।।
धरोहर से हमे जोड़कर जो ऊंचाईया देता है।
रूठे कभी हम , तो खुद भी रूठ जाता है।।
कह नही पाता लेकिन सब कुछ जान जाता है।
अपने कल को हमारे आज के लिए भूल जाता है।।
कृष्णा की गीता तो कभी बुद्ध की वाणी है वोह ।
चाणक्य की नीति , कभी राम की कहानी है वोह।।
हजारों थकानो को पल में भूल जाता है ।
जब हमारा खिला चेहरा सामने पाता है।।
मां का दुलार तो एक जैसा ही मिलता है हमे ।
लेकिन पिता हर घाट का अनुभवी होता है।।
गूलर है हमारे सपनों का जो कभी खाली न होगा ।
कृष्णा है हमारे पार्थ का , कभी रोने नही देगा ।।
पिता है , और तो क्या बया करे उनकी सरहदों का ।
बाहों में अपनी सारा ब्रह्मांड सिकोड़े बैठा है।।
Happy father's day.