ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी
पतवार चलाते जायेंगे, मंजिल आयेगी-आयेगी
लहरों की गिनती क्या करना कायर करते हैं करने दो
तूफानों से सहमे जो हैं पल-पल मरते हैं मरने दो
चिर पावन नूतन बीज लिये मनु की नौका तिर जायेगी
पतवार चलाते जायेंगे …
अनगिन संकट जो झेल बढ़ा वह यान हमारा अनुपम है
नायक पर है विश्वास अटल दिल में बाहों में दमखम है
यह रैन-अंधेरी बीतेगी ऊषा जय-मुकुट चढ़ायेगी
पतवार चलाते जायेंगे …
विध्वंसों का ताण्डव फैला हम टिके सृजन के हेम -शिखर
हम मनु के पुत्र प्रतापी हैं वर्चस्वी धीरोदत्त प्रखर
असुरों की कपट कुचाल कुटिल श्रध्दा सबको सुलझायेगी
पतवार चलाते जायेंगे … ©️ जतिन त्यागी