॥ लौ सनातन चिर जलेगा ॥
अब अमावस फिर न होगी,
अब सुधा रस फिर बहेगा,
भर गया है प्राण उर में,
लौ सनातन चिर जलेगा ।
प्रण वही, वर पूर्ण होगा,
दंभ उनका चूर्ण होगा,
तब जली थी ज्ञान - गंगा हमारी नालन्दा,
अब मनोरथ पूर्ण होगा,
याचना नहीं अब रण होगा।
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें,
कहने वाला श्याम कहाँ मिलेगा।
हर सिया - राघव रमेगी,
नीर फिर - फिर क्यूं बहेगी,
क्यों न हर बिस्मिल कहेगा,
लौ सनातन चिर जलेगा।