हे राम दुबारा मत आना
अब यहाँ लखन हनुमान नही।

सौ करोड़ इन मुर्दों में
अब बची किसी में जान नहीं।।

भाईचारे के चक्कर में,
बहनों कि इज्जत का भान नहीं।

इतिहास थक गया रो-रोकर,
अब भगवा का यहाँ अभिमान नहीं।।

याद इन्हें बस अकबर है,
राणा प्रताप का बलिदान नही।

हल्दीघाटी सुनसान हुई,
अब चेतक का तूफान नही।।

हिन्दू भी होने लगे दफन,
अब जलने को शमसान नहीं।

विदेशी धर्म ही सबकुछ है,
सनातन का अब सम्मान नही।।

हिन्दू बँट गया जातियों में,
अब होगा यूँ कल्याण नहीं।

सुअरों और भेड़ियों की,
आबादी का अनुमान नहीं।।

खतरे में हैं सिंह और शावक,
इसका उनको कुछ ध्यान नहीं।

चहुँ ओर सनातन लज्जित है,
कुछ मिलता है परिणाम नहीं।।

वीर शिवा की कूटनीति,
और राणा का अभिमान नही।

जो चिनवा दिया दीवारों में,
उन गुरु पुत्रों का सम्मान नही।।

हे राम दुबारा मत आना,
अब यहाँ लखन हनुमान नही। - ©️ जतिन त्यागी

Hindi Poem by Jatin Tyagi : 111934971
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now