हरिश्चंद्रा महाकाव्य से
मन बस गया जिसके मन में, मैं उसका मन से हो गया।
अतुल्य अनन्य प्रेम को पाकर, मैं उस प्रेम में बह गया।।
क्या पुछूं-क्या कहूं, क्या लिखूं, अब क्या क्या मैं बताऊं।
ईश्वर प्रदत्त ऐसे प्रेम का, सच कहूं जन्म जन्म हो चाहूं।।
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