क्यों हिन्दू कहने से कतराते हैं?
अपने ही घर में डरते हैं
क्यों धर्म बताने से शर्माते हैं?
डर-डरकर के रहते हैं,
क्यों हिन्दू कहने से कतराते हैं?1।।
अपनी माँ के आँचल में,
क्यों छुपकर जिवन बिताते हैं?
कहते नहीं खुले कण्ठ से,क्यों हिन्दू?
क्या हिन्दू कहन लजाते हैं?
क्यों हिन्दू कहने से कतराते हैं?2।।
वसुधैव कुटुम्ब बनाने पर,
क्या हिन्दु पूज्य हो जाते हैं?
जब धर्म मात्र हिन्दू ही है,
तब भी पंथों से डर जाते हैं।
क्यों हिन्दू कहने से कतराते हैं?3।।
कोई समक्ष जब उठकर,
इस्लाम नाम चिल्लाते हैं।
तब मुख हिन्दुत्व छोङ,
बंधुत्व की बात बताते हैं।
कयों हिन्दू कहने से कतराते हैं?4।।
हिन्दुत्व छोङ बंधुत्व सिखाया,
यही हिन्दु अपनाते हैं।
हिन्दुत्व न बोले जाने पर,
कायर हम सोचे जाते हैं।
क्यों हिन्दू कहने से कतराते हैं?5।।
हिन्दू हैं ,हिन्दी भाषी हम,
हिन्दुस्तानी चीते हैं।
गर्व हमें हिन्दू होने पर,
हिन्दुत्व संग हम जीते हैं, फिर
क्यों हिन्दू कहने से कतराते हैं?6।।
है नहीं दोष इसमें हम सब का,
ये नव शिक्षा की गलती है।
हमें पढाया गया नहीं,
हम वीर पुत्र बलशाली हैं।
है साक्षी इतिहास हमारा,
हम काल से भी टकराते थे।
हिन्दू कहने से नहीं कतराते थे।।7।।
अब ज्ञान हो गया है,हमको
अब निज इतिहास सुनाएँगे।
अब उत्कर्ष हिन्दुत्व का होगा,
हिन्दू ही अभिज्ञान बताएँगे।
अब हिन्दू कहने से न कतराएँगे।।8।।
-उत्कर्ष पण्डित