तुमको ही चुन के
बेड़ियों को तोड़ के स्वप्न नये बुन के
साथ साथ चल दिये तुमको ही चुन के
मिलकर देखे साथ तुम्हारे स्वप्न नये नये
लगने लगा है हमको हम हो गये नये नये
कंटक पथ से डरना क्या जीना क्या मरना क्या
रघु कुल की रीत निभाने नये नये
वन कानन को चल दिये सिय लखन को चुन के
अब गर्मी क्या है सर्दी क्या बेमौसम बरसात क्या
पंक लगे पावों में तो सावन को ठुकराना क्या
तुम तक आते आते पाव अगर थक जाये तो
चलना क्या सुस्ताना क्या
फिर कनुप्रिया को समझाने का क्या उद्धव को चुन के
एक बात कहने को हम कितनी बार बार मनन करते है
तुमको मनाने को हम कितनी बार जतन करते है
आओ हम तुम साथ मिल
घर बसाने का जतन करते है
नियति ने हमें लिख दिया नियति में चुन के