देवी
आज धरा पर देवी आई ,
हास्य रुदन का अवसर लाई|
कृष्ण केश प्रिय किलकारी ,
नर्म कपोल रुदन बरखा भारी|
सुता दर्शन मानों है काशी ,
आज बनी जननी मात भी दासी |
भात प्रसन्न मात सहोदरा लाई
आज धरा ...................
आँगन में पैजनियाँ नाच रही ,
नव गुञ्ज्य ध्वनियाँ बाज रही |
नव कार्य करे बार-बार,
ममता का पहने हार-बार |
देख देवी की शक्ल,
करता हूं उसकी नक्ल|
पुत्री उल्फत से नहाई,
आज धरा...................
बदली शक्ल बदले रुखसार,
देवी ने पहना यौवनहार |
उन्मन हुए है मात-पितु ,
बेकली लागे है रिपु |
कैसे लाएँ इतनी श्री ,
यौतुक से हो जाए फ्री |
बना जवाईं या बनी है खाई ,
आज धरा...................
चक्षु में लक्ष्मी बोल रही ,
देवी का अब कोई मोल नहीं l
आब रहा रुख पर सम्मान ,
बनेंगे समाज में महान |
खोल दिया मुख सर्प समान ,
लूट लिया देवी-खानदान l
अश्रु बहाती देवी की माईं ,
आज धरा...................
देवी बन चली है दासी ,
ज्यों दूषित हो गई है काशी l
निर्लज चाहते हैं मर्यादा ,
बुद्धिहीनों का बना कायदा |
बेशर्मी से ये बाज न आए ,
लक्ष्मी सह देवी को खाए l
दायजे से क्या संतुष्टि पाई ,
आज धरा...................
- ' उदय ' 16/05/2023