Hindi Quote in Poem by Uday Bunkar

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देवी

आज धरा पर देवी आई ,

हास्य रुदन का अवसर लाई|

कृष्ण केश प्रिय किलकारी ,

नर्म कपोल रुदन बरखा भारी|

सुता दर्शन मानों है काशी ,

आज बनी जननी मात भी दासी |

भात प्रसन्न मात सहोदरा लाई

आज धरा ...................


आँगन में पैजनियाँ नाच रही ,

नव गुञ्ज्य ध्वनियाँ बाज रही |

नव कार्य करे बार-बार,

ममता का पहने हार-बार |

देख देवी की शक्ल,

करता हूं उसकी नक्ल|

पुत्री उल्फत से नहाई,

आज धरा...................


बदली शक्ल बदले रुखसार,

देवी ने पहना यौवनहार |

उन्मन हुए है मात-पितु ,

बेकली लागे है रिपु |

कैसे लाएँ इतनी श्री ,

यौतुक से हो जाए फ्री |

बना जवाईं या बनी है खाई ,

आज धरा...................


चक्षु में लक्ष्मी बोल रही ,

देवी का अब कोई मोल नहीं l

आब रहा रुख पर सम्मान ,

बनेंगे समाज में महान |

खोल दिया मुख सर्प समान ,

लूट लिया देवी-खानदान l

अश्रु बहाती देवी की माईं ,

आज धरा...................


देवी बन चली है दासी ,

ज्यों दूषित हो गई है काशी l

निर्लज चाहते हैं मर्यादा ,

बुद्धिहीनों का बना कायदा |

बेशर्मी से ये बाज न आए ,

लक्ष्मी सह देवी को खाए l

दायजे से क्या संतुष्टि पाई ,

आज धरा...................

- ' उदय ' 16/05/2023

Hindi Poem by Uday Bunkar : 111915661
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