कविता
सुन रहा है ना तू ... कुछ कह रहा हूँ मै
" संदीप सिंह (ईशू)"
सुन रहा है ना तू ..... कुछ कह रहा हूँ मै ,
सुन रहा है ना तू..... कुछ कह रहा हूँ मै,
कुछ ज्यादा नही है ख्वाहिशें अपनी,
बेहद छोटी सी दुनिया है मेरी,
जहाँ हैं कुछ कच्ची उजड़ी पगडंडी ,
जब कभी बारिश, ओले, धूप, थपेड़े,
तेजी से आते है दौड़े.....
करता हूँ बचने को इनसे,
किंचित संसाधन है थोड़े मोड़े,
सुन रहा है ना तू..... कुछ कह रहा हूँ मै,
फिसलन, रपटन, गिरना उठना,
फिर संभालना आगे बढ़ना,
विपरीत आँधियों से लड़ता,
अब टूटा सा जा रहा हूँ मै l
सुन रहा है ना तू.... कुछ कह रहा हूँ मै l
मैंने कब रोका तुमको कि...
ना लो मेरी कठिन परीक्षा,
स्मृति मे जा कर देखो...
करबद्ध निवेदित सा... मांगी थी कुछ भिक्षा,
सुन रहा है ना तू... कुछ कह रहा हूँ मै।
देना बिखेर भले अंगारों पर,
तृण भर भी आह नही निकले,
बस जीवित 'साहस' को रखना,
तपिस रूह से क्यो ना मिल ले..
सुन रहा है ना तू... कुछ कह रहा हूँ मै,
माना जीवन है मरूधर सा ,
" ईशू "समुचित पानी की आस रहे,
जब तक जीवित रहे शक्ति अश्व,
तब तक मरूधर मे हरियाली घास रहे,
द्रवित हृदय से निवेदित..... बस हरियाली घास रहे।
संदीप सिंह (ईशू)