कविता- प्रीत जागते अंतरी
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असता तू समोरी प्रीत जागते अंतरी
पाहिले तुज किती मन ना भरते तरी
प्रेमात मन पडता जादू नवीन घडे
बंधन प्रेमाचे मधुर मना खूप आवडे
द्यावी साथ तू असे आस हीच अंतरी
असता तू समोरी प्रीत जागते अंतरी
भावुक हळवे स्वप्न तू सखी बावरी
भावविश्व अनोखे आकारले अंतरी
कोण तू ,कोण मी, ना उरले काही
दोन मने एक झाली बाकी ना काही
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