जानू ना क्या है
इस सागर की बात
क्यू देखे है मुझको
ये यादो के साथ
क्यू बहकी है आँखे
इन लहरों की आज
अब याद है मेरी
एक बादल के पास
ये यादे कभी है
कलम की डोरी
कभी हल्के घावो की
दो छोटी सी बोरी
पर नहीं है इसमे
कुछ मीठा सा सार
तो कैसे होगी पूरी
फिर सागर की बात