तेरे शब्दों से बँधा हुआ
सूक्ष्म तेरा साथ है,
यह नगर का रास्ता
तेरे बिना बिरान है।
तू धूप अपनी दे जरा
मैं निकट तेरे हूँ खड़ा,
पता अपना कह दे जरा
मैं उत्सुक हूँ खड़ा।
राह तेरे साथ है
मैं कदम लिए आ रहा,
शक्ति तुझमें है पड़ी
मैं दृष्टि पाने जा रहा।
* महेश रौतेला