# हिंदी साहित्य काव्य मंच नमन
बहुत सहन कर लिया, सहने की क्षमता होती है
जो कुछ घट रहा, उससे देश की गर्दन झुकती है
देश की दीवारें इंसानी काली करतूतों से अब परेशान है
देश को भय लग रहा, ढूंढ रहा, लिखा सविधान कहां है ?
जिन्हें देश की चिंता अब वो सिर्फ सरहद के जवान है
जिनमें देश भविष्य ढूंढ रहा उनके पास कहां ईमान है ?
आरोप प्रत्यारोप में हर कोई, देश से नहीं उन्हें सरोकार है
गर्दिश में देश की छवि, अब हमें स्व- चेतना की दरकार है
उठो देशवासियों जागो, देश-धर्म निभाने का ये अवसर है
पाई स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना कर्तव्य युक्त अधिकार है
छा रहे जो बादल हिंसा के हर रोज हर कहीं बरसते है
महफूज नहीं रही राहें अब तो चलते पांव भी जलते है
उठ जाओ, दिवस स्वतंत्रता का, देश धर्म भी निभाना है
देश प्रेमियों तय करो, तिरंगा सदा बिन खौफ फहराना है
चाहत तिरंगे की उसे हर दिल की प्राचीर पर लहराना है
देश-भक्ति का जज़्बा कायम रहे, उसे सदा मुस्कराना है
✍️ कमल भंसाली