शीर्षक : नश्वरता
न कोई दुःख है
न कोई सुख है
क्यों शिकायत करे ?
जिंदगी का अपना रूतवा है।
जिंदगी बन रही बाजार है
बिन कीमत कितनी लाचार है
हर कोई बिकने को तैयार है
बिन खरीद के सब दावेदार है
टूटे अंदर से है
बाहर तो शानदार है
कोई भी खोले
बेशर्मी के बेशुमार द्वार है
सच शायद सोया सा रहता है
झूठ हर समय तैयार रहता है
विश्वास हर जगह भटकता है
छल का डर तभी तो रहता है
स्वार्थ संबंधो का विकार है
आदमी तभी तो बीमार है
प्रेम की संजीवनी तैयार है
सिर्फ शुद्धता की दरकार है
दुनिया सुंदर है
शिव अंदर है
चेतना एक स्वर है
आत्मा तो अमर है
सोचो, शरीर क्यों नश्वर है ?
✍️ कमल भंसाली