जब दुःख हद से ज्यादा आने लगे
तब पिता याद आते है
जब पीड़ा नीर बनकर आँखों से बहने लगती है
तब पिता याद आते है
जब जमाना असुर बनकर सताता है
तब पिता याद आते है
जब परिस्थिति अपने नियंत्रण से बाहर हो जाती है
तब पिता याद आते है
पिता के बिना
होता है एक अनंत अधूरापन
जो उनके बिना कभी पूर्ण नहीं होता
उनकी हर डांट
हर बात
तब कचोटने लगती है
हृदय को भीतर तक
तक वो डांट
वो बात
मिलना बंद हो जाती है
जब व्यक्ति का साहस जवाब दे जाता है
तब पिता याद आते है
उनका साथ होना ही किसी साहस से कम न होता है
जब व्यक्ति को अकेलापन तड़पाता है
तब पिता याद आते है
उनका पास होना ही अकेलेपन की काट है
जब व्यक्ति को अपनों से भी दर्द मिलता है
तब पिता याद आते है
जिनके साथ होने पर सब अपने भी साथ हो जाते है।
-नन्दलाल सुथार'राही'
-नन्दलाल सुथार राही