अकेली सी, मेरी जिंदगी
तन्हाइयों में मुस्कान ढूंढती है
किसे कहे, जिंदगी कैसे चलती है ?
कल के मेरे बीते पलों में
शुक्र है, महक अब भी बाकी है
किसे कहे, जिंदगी अब इतफाकी है ?
कल वो सब मेरे साथ रहते
आज वो अपनी दुनिया में रहते है
किसे कहे, अब आंखे उन्हें भी ढूंढती है ?
पथिक बन ही चलता
मंजिले तो अब कतराती है
किसे कहे, दूर से ही तकती है ?
निराश सी लगती है, जिंदगी
सड़क चाहत की सूनी सी दिखती है
किसे कहे, अब सांसे भी चलते थकती है ?
कनक आभास सी है, जिंदगी
इस सोच में भी खोट नजर आती है
किसे कहे, कुछ हसरतें अब भी सताती है ?
✍️ कमल भंसाली