Hindi Quote in Poem by Sanjay Nayak Shilp

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जब तुम सुदूर उत्तर
की ठंडी पहाड़ियों पर
आत्मज्ञान की खोज कर रहे होवो
तब मैं रेगिस्तान में
एक अनन्त सफर पर
पानी की खोज में रहूंगा

वो पानी जो उत्तर के
पहाड़ों पर जम गया है
जो कि पिघल नहीं सकता
जो कि बहती नदियों तक
रेगिस्तान की रूह को
ठंडक दे सके

तुम जब उत्तर के
मैदानी इलाकों में
पीले गुल तूर के फूल देखोगी
सेब, लीची, बादाम अखरोट
केशर छू रहे होवोगी

देवदार,
विलो और साइडर के
गोल घेरे को बाहों में न भर सकोगी
और इनकी ऊंचाई देखने पर
गिर जाएगा सर से दुपट्टा

उस वक़्त मैं रेगिस्तान में
खोजता फिर रहा होंउंगा
किसी खेजड़ी का पेड़
क्योंकि
सूरज केवल मेरी खोपड़ी नहीं तपा रहा
मेरे पाँव भी जल रहे होंगे
क्योंकि सारी नमी वाली मिट्टी
तुम्हारे उत्तर ने ले ली है

जब तुम किसी गुफा में
बैठकर शाम्भवी मुद्रा में लीन होवोगी
अपनी अधखुली आंखों के मध्य
तीसरे नेत्र पर भाव केंद्रित करोगी
और किसी बहते झरने की कलकल से
अपने भटकते ध्यान को
एकत्रित कर रही होवोगी

उस वक़्त मेरे माथे से
चुहकर खारा पसीना
मेरी आँखों में घुसकर
आँखों में चिरमिराहट लगा देगा
तब तुम मुझे सोचना
जैसे मैं तुम्हें सोच रहा हूं
तब तुम पूछना प्रभु से

कि क्यों सारी धरती
सारे लोग, सारे धर्म
सारी जातियाँ
गोरे काले, नाटे लंबे
सभी स्त्री पुरुष
सभी के लाल रक्त की तरह
सब एक जैसे क्यों नहीं बनाए
तुम जरूर पूछना
क्योंकि सुना है
सृष्टि का निर्माता
वो भगवान वहीं कहीं
उत्तर में रहता है

सुनो तुम उत्तर में हो
सभी प्रश्नों का उत्तर ले कर लौटना

संजय नायक "शिल्प"

Hindi Poem by Sanjay Nayak Shilp : 111880784
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