कितनी हसरत से संभाला था
अपनी तकदीर समझते थे
आज उसे भी खो दिया हमने
जिसे अपनी जागीर समझते थे।
चौखट चौखट माँगा जिसको
न मंदिर मस्जिद समझते थे
आज उसे भी खो दिया हमने
जिसे अपनी जागीर समझते थे।
भरोसा इतना था बातो पर
पत्थर की लकीर समझते थे
आज उसे भी खो दिया हमने
जिसे अपनी जागीर समझते थे।
-रामानुज दरिया