होली का त्योहार
जब होता मेल रंगों का,मन से मन के जुड़ते तार,
जब फगुनाई हवा में,चढ़े तन-मन में नया खुमार।
जब पीली चूनर ओढ़े प्रकृति,करती नया श्रृंगार,
जब वासंती छटा हो बिखरी,आता होली त्योहार।
जब वैर,भेद भुला के सारे,मिलते गले बन यार,
जब पीले,हरे,बैंगनी,रंगों से,बनते सतरंगी हार।
जब मुख पे अबीर गुलाल,मलते बनकर प्यार,
जब राधेकृष्ण का नेह बन,आता होली त्योहार।
जब रंगों से सराबोर तन-मन,मस्ती का उपहार,
जब गली,गांव और नगर डगर में रंगों की बहार।
जब सृष्टि सारी हो तत्पर,करने सबको एकाकार,
तब देने खुशी जन-जन को,आता होली त्योहार।
(मौलिक रचना)
(मातृभारती के सभी पाठकों, रचनाकारों एवं टीम मातृभारती को रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं🙏)
योगेंद्र