अकेले रहना सीख गई हूँ मैं
माना अब इतना फर्क नहीं पड़ता
पर हाँ कभी-कभी दोस्त की कमी खलती जरूर है मिलता कोई नहीं वो किस्मत की बात है
अब रो कर फिर शांत होना सीख गई हूं मैं
खुद को संभालना आ गया है
बातें कह नहीं पाती बस दिल में दबाना आ गया है पर जनाब दिल है भर जाता है बातों से
बयाना आँखे कर देती हैं
कौन सुनेगा मेरी खामोशी को
बस इस सोच में सोच सोच कर लिखना
सीख गई हूँ मैं । । ।🥲

-श्रुति शर्मा❤

Hindi Poem by Shruti Sharma : 111862153

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