हिजाब
ना मैं हूं किसी तन की रवानी
ना मैं हूं किसी लिबास की कहानी
बहते हर्फ को मिले जो सीमा
बन जाए हिजाब उसकी निशानी
उठे जो नैन अपनी शर्म छोड़े
कर्ण जो रोज़ हर किसी को सुने
जान सके जो अपनी सीमा
बन जाए हिजाब उसकी निशानी
चहुं ओर जो मगरूर बने
मूर्ख हुए खुद को पंडित कहे
भेद सके जो अपनी सीमा
बन जाए हिजाब उसकी निशानी
खलीफा बन हुआ न मसीहा
ताकत जो औरों पे कहर बने
खोज सके जो अपनी सीमा
बन जाए हिजाब उसकी निशानी
मज़रूम हर दर्द सहता रहा
धनी किसी और को न जान सका
कुमार देख दोनो की सीमा
क्या यही हिजाब बना
- कुमार