ऐसा कहा जाता है की विजया दशमी के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी
अगर आप भी ये सोचते है तो आज में आपसे कुछ कहना चाहूंगा जरा गौर करना
की बुराई तो उसी दिन हार गई रावण की
जिस पल उसने सीता का हरण किया
क्युकी सीता की पवित्रता तथा मर्यादा पर
रावण की बुराई का हाथ उठ नही सका
आज विजया दशमी पर राम की विजय को माना जाता है
परंतु राम ने तो उस रावण पर विजय पाई जो असल में बदल चुका था जिसमे बुराई थी ही नहीं
तो क्या हम इस त्योहार को सीता की जीत कहकर नही मना सकते ?
हम पुरुष प्रधानत्व क्यू देते है जब की पूर्णता तो स्त्री है
अधूरापन तो पुरुष में होता है स्त्री तो पूर्णता की प्रतीक है
इसे बेहतर तरीके से समजावु में तो
स्त्री अपना सब कुछ छोड़ कर आती है एक पुरुष को पूर्ण करने
उसके अनेकों रूप लक्ष्मी स्वरूप जैसे पैसे बचाना
अन्नपूर्णा प्रेम से सबका भोजन बनाना
जन्मदात्री शक्ति स्वरूप सर्जन करता
जरूरत पड़े तो दुर्गा स्वरूप
ज्ञान रूप एक सरस्वती अपने बच्चे को पढ़ाती है
प्रेम संगिनी राधा प्रियसी रूप अपने कान्हा का युगों तक इंतजार करती हुई
हे स्त्री तुझे सत सत नमन है
आज की विजया दशमी तेरे नाम है
कभी सोचा है अगर आज का दिन पुरुष प्रधान था
तो इसे विजया दशमी क्यों कहा गया विजय क्यू नही
कभी सोचा है इस दिन से 9 दिन पहले स्त्री(मां)
के 9 रूपो की पूजा क्यों की जाती है ?
इसका जवाब यही है शायद की 9 रूपो की पूजा कर 10 वा रूप स्त्री का मर्यादा व पवित्रता है
जैसे एक बात स्त्री को ये भी समझनी है
की रावण ने सीता मां का हरण किया था
उन पर कुद्रस्ति डाली इसमें गलती सीता मां की नही थी ये कार्य रावण की वृत्ति का था
पर रावण सीता की और इसलिए खींचा गया क्युकी उनके स्वभाव में चीर शांति थी, धीरता थी, पूर्णता थी, पावन ता थी, मतलब जो चीज रावण के पास न थी इसलिए वो उनकी तरफ मोहित हुआ
और मां ने अपनी पवित्रता तथा अपने स्वभाव से रावण के अंदर की बुराई को खत्म कर दिया
तो हे स्त्री तुझसे पूर्ण कोई नही है दुनिया में
तू सर्वोत्तम है आज में कहूंगा स्त्री_उत्तम है
तुझे रोने के लिए किसी कंधे की आवश्कता नही
तू खुद ही खुद का सहारा है
जब कोई काम करे तो खुद ही खुद के कंधे थपथपाना
खुद ही खुद को शाबाशी देना
बस इतना ही कहना है मेरा हे स्त्री तुझे सत सत नमन मेरा
कोई पुरुष चाहे वो राम ही क्यों न हो तेरे चरित्र पे उंगली उठाने का अधिकारी नहीं