ऐ समंदर ;
इतना तो बता दे ;
तू एक ही पल में यू इतना शांत ; दूसरे ही पल में यू तूफ़ानी कैसे हो जाता है!
तु एक ही पल में यू इतना मासूम ;
दूसरे ही पल में यू खूंखार कैसे हो जाता है !
तू एक ही पल में यू इतना समझदार,
दूसरे ही पल में यू नादान कैसे हो जाता है!
तू एक ही पल में यू इतना सहज;
दूसरे ही पल में यू कठिन कैसे हो जाता है!
तू एक ही पल में यू इतना सहमत ;
दूसरे ही पल में यू विरोधी कैसे हो जाता है!
तू एक ही पल में यू इतना स्थिर;
दूसरे ही पल में यू चंचल कैसे हो जाता है!
तू एक ही पल में यू इतना सुलभ;
दूसरे ही पल में यू दुर्लभ कैसे हो जाता है!
तू एक ही पल में यू इतना अपना;
दूसरे ही पल में यू पराया कैसे हो जाता है!
तू एक ही पल में यू इतना अग्रिम ;
दूसरे ही पल में यू अंतिम कैसे हो जाता है!
एक लहर