........बचपन ........
क्या यही बचपन की कहानी थी .....
सुबह का 6:00 बजे का अलार्म , हमारा स्कूल ना जाने का बहाना था,
फिर भी गए तो वहां क्या हुआ वह भी आ कर बताना था।
हमारी हर एक मस्ती के लिए पूरी Family हस्ती थी,
हमारी खुशी तो बारिश के पानी में चल जाए, वह कागज की कश्ती थी।
बचपन में Motivation के लिए पापा की डांट पड़ी थी,
खिलौना कितना भी छोटा क्यों ना हो उसके लाने की खुशियां बड़ी थी।
सिर्फ खेल,कूद ,मस्ती, दोस्ती ना ही कोई गम था,
हर बार मां का वो तिलक थोड़ी ना कोई राजतिलक से कम था।
बचपन में हर गुनाह का काबिल- ए-माफी था,
घर कितना भी बड़ा क्यों ना हो पर छुपने के लिए मां का आंचल काफी था।
शायद लगता है कि यही बचपन की कहानी थी .....
-Dhruval Gondaliya