अरे! जरा चड़ने के लिए रास्ता तो देना।
ट्रेन में चड़ते वक्त किशोरी लाल ने कहा। (काल्पनिक नाम) ट्रेन के दरवाज़े पर भीड़ से किसी की आवाज़ सुनाई पड़ी । जी अंकल! अपना सारा सामान भीड़ में से जैसे - तैसे चड़ाने के बाद अपनी सीट पर बैठ कर ही आराम आया । और धीरे - धीरे सभी यात्री भी,
सफर के लिए ट्रेन चलने का इंतज़ार करने लगे,
चाय गरम ..चाय, पेपर..लेलो पेपर.. बाहर प्लेट- फार्म पर कुछ इस तरह, आवाजे आ रही थी। चाय वाला सभी आने - जाने वाले मुसाफिरों को इन सर्द हवाओं से कुछ राहत देने का काम बाखूबी से कर रहा था। और अख़बार
वाला दुनियां की तमाम खबरों को लोगों तक पहुंचाने का।
किशोरी लाल उर्फ़ (किशोरी चाचा)
अपने यहां इसी नाम से जाने जाते थे। ने अपनी पैन्ट की जेब में हाथ डालकर फोन निकला और अपने बेटे को call लगाई, मैं train में बैठ गया हूं अभिनव (काल्पनिक नाम) मुझे लेने कोन आ रहा है?? अपने बेटे अभिनव से पूंछा,
पापा, में ऑफिस से half - day ले लूंगा । चिंता ना करो। आपकी ट्रेन पहुंचने तक मै अपना सारा काम निबटा लेता हूं। मैं आपको लेने पहुंच जाऊंगा । कहकर अभिनव ने फोन रख दिया।
फिर किशोरी चाचा की सुबह अखबार पड़ने की आदत ने उन्हें मजबूर किया तो, ट्रेन की खिड़की से अख़बार वाले को आवाज़ दी, ज़रा एक अखबार तो देना।
अख़बार वाले ने अख़बार देकर अख़बार के 5 रुपए
लिए और आगे बड़ा,
ट्रेन चलने में अभी वक्त था, तो चाय वाले से गरमा
गरम चाय भी ले ही ली। किशोरी चाचा,
बाज़ार का क्या हाल है, सोने के भाव कहीं फिर तो नहीं बड़ गए । ये जानने की उत्सुकता में
फिर अख़बार के पन्ने पलटने लगे। और चाय की
चुस्की भरने लगे...................।