अब अनमोल नहीं राखी के धागे भी।
सोने,चांदी,नकली हीरे,मोतियों से बने,
बाजार में ढेरों उपलब्ध सस्ते-महंगे,
भाई-बहन की आर्थिक स्थिति को दर्शाते,
पाने और देने वाले की हैसियत को बताते,
प्रदत्त उपहारों की कीमत का अंदाजा लगाते,
रिश्तों को महज औपचारिकतापूर्ण पाते,
व्यस्त जिंदगी में उनसे मिलने से कतराते,
तीज-त्योहारों को बस रस्म सा निभाते,
न उत्साह मन में, न रँग जिंदगी में,
बोझिल से रिश्तों का मोल नहीं आगे भी,
लिफ़ाफ़े में बन्द बेमोल राखी के धागे भी।।
रमा शर्मा 'मानवी'
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