वो ठीक कहता है
मुझे निष्ठुर हो जाना चाहिए
गुज़रे हुए हर पल को
आने वाले हर पल के छोर पर ही
छोड़ आना चाहिए
ऐसा हो सकता है
ऐसा किया भी जा सकता है
लेकिन,
उसे ये कैसे समझाऊ कि
गुज़रा हुआ हर पल
कितना धनी है
उसी के नाम से
उसी के खयालों से
उसी की मोहब्बत से
आने वाले पल का क्या भरोसा?
साँसे बची न बची
मेरी तो पूंजी ही वो गुज़रता लम्हा है
जिसके हर कतरे में
वो खुद रहता है
ठुकरा सकती हूँ मैं आने वाली ज़िंदगी के हर पल को
उसके प्यार में गुज़रे हुए पलों को मगर
नहीं छोड़ सकती मैं
इतनी निष्ठुर
नहीं हो सकती मैं |
#निर्मोही