जानता हु फ़िज़ा ठीक नहीं
गुम हौसलों का शोर है
घबराने की ज़रूरत नहीं,
ये कुछ पल का ही भोर है ।।
उम्मीदों का चिराग जलाये रखना
आशाओं की मशाल बुझने न देना
हम जीत फिरसे जाएंगे
खुद का खुद से ये वादा रखना ।।
ये जो ग़म के साये है
हम सबको ही तो बांटे है
बस तुम थोड़ा ठहरे रहना
आने को फिर से धुप है ।।
तुम मिल जुल के ही रहना
क्युकी साथ ही सबसे ख़ास है
जब खुदा लगने लगे है दूर
तब अपनों का ही आस है ।।
फिर आएंगे वापस वो गलियारे
जिसमे न थे कभी हम हारे
आज थोड़ी हिम्मत और रख ले
मिट जाएंगे अपने ग़म सारे ।।
~ रोहित किशोर