तुम दुआ हो कोई या हो हकीकत
ज़रा बतला दो मुझे क्या है हकीकत
वो वाकिफ थे मेरे हर पहलू से मगर
गैरों पे किया भरोसा है ये हकीकत
वो दिल है रूह है वो जान है मेरी
लेकिन वो बेवफ़ा भी है ये है हकीकत
हमने रो रो कर काटी हैं हिज्र की रातें
रकीब से खुश तो वो भी नही है ये हकीकत
लोग पूछते हैं बदनाम से लिखने का सबब
इश्क़ में किया खुद को बर्बाद बस है ये हकीकत