बने अजनबी ऐसे दर-किनार कर दिया
दोबारा हाल न पूछा सीधे वार कर दिया
नाम न था किसी महकमे न अदालत में
लगाके इल्जाम उसने बेशुमार कर दिया
समझ न पाए साजिश, जाल ऐसा फेंका
अंदर से बिखरे बाहर से बीमार कर दिया
न छोड़ा बोलने लायक, बदनामी हुई जो
बचे हुए लफ़्ज़ों को भी लाचार कर दिया
तख्ता पलटा बदले हर बात से जो बोली
एक बात को बढाके दो से चार कर दिया
बदल गई ज़िदगी अचानक सब बिखरा
सोंचे न थे ख़्वाब ऐसा साकार कर दिया
-ALOK SHARMA