भले ही वो मेरी नज़रों से बोहोत दूर था
अंधेरे में भी ऊसका साया मुझे जुहूर था
ईतनी तारीफों भरें नगमे गायें थे मैंने ,उनी
नगमों के वजह से उसे खुद पे गुरूर था
मुहब्बत में गलतीयां होती रहती है सबसे
लेकिन मेरे हिज्र में किसी और का कसुर था
उसके हुस्न पर गजलें लिखते थे तुम आदि
वही गजलें सुन के तो उनके चेहरे पे नूर था