पुनः स्थापित करना है, अपने आराध्य धाम को।
माथे पे तिलक लगा लो, नमन करो श्री राम को।।
बाबा विश्वनाथ ने हमें, पावन-काशी बुलाया है।
असंभव सेवा का अवसर, प्रदान हमें कराया है।।
भक्ति और श्रद्धा से बने, पुण्य धाम भक्त वत्सल का।
माता गंगा में भी हो अब, संगम अश्रु - स्वेदजल का।।
यज्ञमय: हो चारों दिशाएं, आकाश में गूंजे नांद यही।
साधना करें अनीश्वर: की,चेतन हों वीरभद्र सभी।।
-Sandeep Shrivastava