Hindi Quote in Poem by सतेश देव पाण्डेय

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अरण्य पथ

बन बटोही निकल पड़ा,
कानन पथ में पर्वत पाहन था।
सवार होकर चल पड़ा,
द्वि-परिधि का वाहन था।
कुछ दूर चल कर देखा मैने,
पथ-सुधारक प्रगति पर था।
धुंध हुआ था राहों में,
यात्रा करने में डर था।
भूरज विलय बयारों में,
उस रज से मैं सना-घना था।
मंद-गति से चलता मैं,
उस पथ पर जो अभी बना था।
पहले मैंने देखा था,
हरियाली जो लहर रहा था।
प्रखर प्रहार करते जड़ में,
भूमंडल भी कहर रहा था।
देखा मैने तोड़ते हुए,
उपकरण उपल के चट्टानों को।
विध्वंस करते हुए,
झूमती हरीता के उद्यानों को।
छाया तो अब शून्य हुआ,
निष्प्राण वटवृक्ष धरासायी था।
मरुधरा सा खण्ड क्षितिज का,
श्वास लेने में बहुत कठिनाई था।
देख दृश्य हतप्रद हृदय,
क्षण दूर अवसाद मिटाने बैठा था।
खग-विहंगम का झुंड निकला,
कोलाहल के ध्वनि से गूंज उठा था।
मानो जैसे कहती हो वह,
विकट प्रलय अब निकट आया।
तरसेंगे सब छाव नीर से,
तुमने जो तरुवर काट गिराया।
तल गगन के उड़ते पंक्षी,
बाधाओं का बोध कराती।
सूखे नीर निर्झर से,
मकर मीन का अंत हो जाती।
ऐसा होगा मानव जीवन,
अल्प का होगा आयु उसका।
गूढ़ व्याधि हर चेतन में,
शल्य का उपचार है जिसका।
तरंग जाल जो बिछी हुई है,
शीघ्र संचार को देती।
घातक है यह घाती,
वज्र प्रहार से भी भारी होती।
पकड़ो तुम इस अवसर को,
लौट ना फिर वापस आएगी।
सोच समझ कर कदम बढ़ाओ,
घड़ी समय बताएगी।

सतेश देव पाण्डेय

Hindi Poem by सतेश देव पाण्डेय : 111681918
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