कहते हैं कि आगे बढ़ने के लिए सपनों का देखना बहुत जरूरी है या यूँ कहिये कि तरक्की करने के लिए सपनों का होना आवश्यक है...
मगर उम्र बढ़ने के साथ सपनों की धार भी कुंद होती जाती है...
थैली में सपने बहुत इकट्ठे हो जाते हैं क्योंकि ज़िन्दगी के अलग-अलग मोड़ों पर कुछ नये सपने जुड़ते चले जाते हैं...
धीरे-धीरे खुद ये एहसास होने लगता है कि अब ये सपना हमेशा के लिए सपना ही रह जायेगा...हालाँकि दिल नहीं मानता मगर दिमाग कुछ और कहता है!!!
कुछ सपनें अच्छे वक़्त के इंतेज़ार में दम तोड़ देते हैं...
कुछ रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने की कोशिशों के तले दब जाते हैं...
पर ये भी ज़िन्दगी का एक खूबसूरत पहलू है कि हर हाल में हम सपने देखना छोड़ते नहीं हैं चाहे ज़िन्दगी कितनी भी कठिनाईयों से गुज़र रही हो...
ज़िन्दगी चलती रहती है और सपनों का बस्ता भारी होता रहता है...
© रविनामा