उनके चहेरे की चमक छीन गया था कोई,
नफ़रत के दबदबे में कई अरसे से मुस्कान दबी हुई थी।
उनके जज़्बात लफ्ज़ ए बया ना हो सके
इतनी कमबख्त जाहिर इश्क से बगावत हुई थी।
पहेचान उनकी मेरे साए से लगा कर चलने लगा,
आख़िर सफ़र तय करने पर मंजिल पाई थी।
एक ओर कई हसी और एक तरफ दबी थी तकलीफ़,
तो एक ओर कास्ट के खेल से महबूब से जुदाई लिखी थी।
-नाईशा