#मेरा_प्रेमपत्र 
तुम्हारे नर्म बालों में
उंगलियों को उलझा लूँ
तेरे माथे की सिलवट को
होंठों से चूम लूँ
यह मैं नहीं लिख पाऊंगी।
मैं नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....
तेरे हाल चाल के साथ
मेरे चंद सवाल होंगे
मैं लिखूंगी इस भ्रष्ट समाज की बातें
रोते हुए दिन और सिसकती हुई रातें
मैं पूछूंगी कैसे बच्चों के आँसू रूकेंगे
भूखे जो पेट हैं
कैसे उनके पेट भरेंगे।
तेरे संग महल बसा लूँ
यह ख्वाब न मैं लिखूंगी
हर इंसा को छत मिले 
कुछ ऐसी चाह लिखूंगी
मेरे पहले प्रेमपत्र में
न आसमानी सपने होंगे
मैं हकीकत की धरा पर
तुझसे तेरे कर्म लिखू़गी
नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....
मुझे तुझसे जानना है
कि क्यों धरती मुरझाई है
क्यों इंसान ने हैवां सी फितरत पाई है
उन बेजुबानों की हर एक आह लिखूंगी
मैं अपने प्रेमपत्र में सारी चाह लिखूंगी
तेरी बाँहों में सकूं चाहूं
न ऐसा गीत लिखूंगी
तेरी बाँहों से यकीं चाहूं
मैं ऐसी बात लिखूंगी
तुझे तेरे फर्ज की राह पर चलना होगा
इस गगन की छांह में
अब सच को पलना होगा
नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....
जर्जर सी देह टूटी
क्यों उसकी यहाँ दिखती है
लूटती है क्यों आबरू
क्यों मजबूरी बिकती है।
लटका है क्यों फांसी पर
मेरे देश का अन्नदाता
क्यों हर फसल के साथ
उसकी हस्ती मिटती है।
मुझे करनी है मुलाकत
नहीं तुझसे तन्हाई में
मैं चाहूं तू मिले मुझे
दुनिया की रूसवाई में।
 नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....
मैं अपनी नर्म हथेली 
से तुझे न सहला पाऊंगी।
तेरे पास रहकर,
न तुझको बहलाऊंगी।
मेरे प्रेमपत्र में 
दुख का होगा भरा कोना
मैं लिखूंगी तुम्हें
तुम बस मेरी बात सुनो ना!
 नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....
क्या फिर भी तुम मेरा
पहला पत्र पढोगे
क्या दिल से लगाकर इसको
अपने करीब रख सकोगे?
दिव्या राकेश शर्मा