मजधार में फंसी कश्तियां ढूंढती है किनारों को,
इबादत करु खुदा से बदल दे हाथ की लकीरों को। फुर्सत के दिन कभी-कभी तो आते हैं, ऐसे कैसे जल्दी जल्दी चले जाते हैं। कोई तो रोक लो, बदल दो ऐसी तस्वीरों को।
"हर्ष" कहेता हैं, आओ मिलकर बदल दे तकदीरों को।
- हर्षद गोसाई "हर्ष"
-Harshad Gosai